रविवार, 6 सितंबर 2015

तेरा उदयपुर

फिर से तेरे शहर (उदयपुर) मे आना है

वो भी क्या समय था जब तेरे मासुम से चेहरे का दिदार
करने को हर मिनट गिन गिन के निकालता था
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वो करनी माँता का मन्दिर
गुलाब बाग का वो वीरान कोना ,
फतह सागर की वो पाल जहा बैठ कर घंटो एक दुजे
को निहारना,
नेहरू पार्क का वो पेङ जहा बैठ कर तेरे बालो को सहलाना,
और मेरा वो रुम clz से बहुत दुर जहा तक दोनो का साथ जाना
उफ्फ ये यादे ......, पर गर्व है की
उम्मीद से भी कही ज्यादा
मिला

याद है मुझे आज भी तेरी
गली का पता..
शहर छोड़े बरसों हुए...ये अलग बात है...
।।।।
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बस यांदे
(आदित्य मौर्य)

बस यादे