तुझे पाने की अब ख्वाइश, मन में पाल आया हु
मन्दिर,मस्जिद में तेरे नाम, का धागा बाध आया हु।
कवि आदित्य मौर्य
कंटालिया
तुझे पाने की अब ख्वाइश, मन में पाल आया हु
मन्दिर,मस्जिद में तेरे नाम, का धागा बाध आया हु।
कवि आदित्य मौर्य
कंटालिया
एक दिन यमराज आकर बोला मेरे पास
मुझसे डर क्योकि मै हु, बहुत खास।
मैने कहा अरे बावले, क्या तू असुर शमसान है
और मेरे देश के भ्रष्टाचारियों, से भी महान है।
ज़िन्दा हु पर हर वक़्त मर कर
बेरोजगारी और आतंक से लड़ कर।
मरा ना हो सीमेन्ट यूरिया खा कर
वो क्या डरेगा तुझको देख कर
जा अपने धाम और आराम से कर तू राज
धरती पर बना हुआ है हर कोई यमराज।
कवि आदित्य मौर्य
कंटालिया
8058398148
परीक्षा हॉल में जैसे ही पंहुचा
सब कुछ ही तो शांत था
पर कुछ ही देर में लगा जैसे
कोई आधी या तूफ़ान था।
दरवाज़े की और देखा, तो बस देखता रह गया
आँखे खोली तो मदहोश, मेरा मन हो गया।
जुल्फ़े खुली हुई एक बाला, अंदर आ रही है
तीर वो अपने चंचल, नयनों से चला रही है।
उम्र कच्ची रंग गोरा नैन नक्श सूंदर से थे
सूंदर तन पर वस्त्र विदेशी, वही भाव अंदर भी थे।
यइ सब देख कर मैने कहा, कैसी ये जेल है
परीक्षा हॉल है या कोई, बंदर का खेल है।
तभी अचानक एक सूंदर, नवयुवक नज़र उसे आया
देख के उसको मृगनयनी ने, मन ही मन में मुस्काया।
प्यार से बाला ने उसको, हेल्लो जो यू कहा
जो कुछ याद था वो , सब कुछ भूल गया
प्यारी प्यारी बातों से, बाला ने उसको बहला लिया
जो कुछ उसको जानना था, वो सब जान लिया।
दस मिनट पहले ही बाला , ने कॉपी सर को दे दी
ये देख कर लड़के ने, लात अपने सर पर धर दी।
कवि आदित्य मौर्य
कंटालिया
रोज बेवजह यूँ तुम, रूठा ना करो
पागल हु मै और, पागल ना करो।
तुम्हारी पायल की मीठी सी झनकार
नाक का मोती भी है चमकदार।
यू रोज मुझ पे , जुल्म ना करो
पागल हु मै और, पागल ना करो।
ना लाओ चेहरे पे, अपने बेरूखी
देख तेरी हालात से, कितना में हु दुःखी।
फिर से मेरे दिल को, पत्थर ना करो
पागल हु मै और, पागल ना करो।
मेरी दशा का तुझे ना कुछ भान है
देख तेरा "आदित्य" कितना परेशान है
यू दूर दिल से, मुझको ना करो
पागल हु मै और, पागल ना करो।
कवि आदित्य मौर्य
कंटालिया
जिद करेगे बच्चे, उनको कैसे समझाऊँगी
रोटी के लाले है, पटाखें कहा से लाऊंगी।
चार पैसे नहीं जेब में, दिए कैसे जलाउगी
जब मांगेगे नए कपड़े, तब कहा से लाऊंगी।
होगी रौशनी चारों और, अपना घर कैसे सजाऊंगी
सूखी रोटी तक नहीं, मिठाई कहा से खिलाऊँगी।
टूटी फूटी झोपडी है, पर दीवाली ऐसे मनाऊँगी
रोयेंगे जब बच्चे तब, गोद में लेकर सो जाऊंगी।
कवि आदित्य मौर्य
कंटालिया
हो रहा गांव कंटालिया में, हर तरफ कोहराम
मचा रखा है चोरो ने, अपना आतंक सरेआम ।
किसी की भैस तो किसी की, चैन छिन ली जाती है
रुपये पैसे तो क्या यहाँ, दुकाने तक लूट ली जाती है।
हौसले इनके देखो, तोड़ कर ताले ज़ेवरात ले जाते है
कोई महफूज़ नहीं, घर से बोलेरो तक उड़ा ले जाते है।
पुलिस बस अपनी नाम की ,ड्यूटी बजाती रहती है
घुमते चोर बेख़ौफ़ बाजार में, पुलिस नींद में रहती है।
गरीबों की आवाज, ऊपर तक नहीं जा पाती है
अन्नाराम जैसो की फाइले ,पैसो से दबा दी जाती है।
पुलिस महकमे के वे हाक़िम,"आदित्य" की सुन ले बात
जनता ने हिटलर, मुसोलिनी ,जैसो को भी मारी लात।
कवि आदित्य मौर्य
कंटालिया