शुक्रवार, 30 सितंबर 2016

"कवि" हु मै

अन्याय, शोषण के विरुद्ध अपनी आवाज बुलंद रखता हूं
"कवि" हूं कलम की धार तलवार से भी तीख़ी रखता हूं।

जब भी होता वार पीठ पर, होटो पर बस एक मुस्कान रखता हु
ना हो गुमान कोई कभी मुझे, आईना इसलिए साथ रखता हु।

पढ़ ले हर कोई मुझे, खुद को एक खुली किताब सा रखता हु
गिर कर भी संभल जाऊ, हौसलो में ऐसी उड़ान रखता हु।

दौलत से मुझे क्या वास्ता, बहस माँ की एक तस्वीर साथ में रखता हु
"कवि" हूं कलम की धार तलवार से भी तीख़ी रखता हूं।

          
                कवि आदित्य मौर्य
                      कंटालिया

रविवार, 25 सितंबर 2016

खुली जुल्फ़े

कुछ इस तरह होश मैने  सरेआम, अपने गवा दिये......
देखा खुली  जुल्फों में उसे,  तो सारे नज़ारे भुला दिए।
 

             
                 ✍ कवि आदित्य मौर्य ✍
                         कंटालिया

गुरुवार, 22 सितंबर 2016

नाम का "कवि"

पूछा आज हमसे किसी ने
बड़ा लाजवाब लिखते हो
किन्तु "अपने मुँह मिया मिठू" बन
खुद को कवि क्यों  कहते हो

धीरे से मै मुस्काया और ,सीधा सा उसे बता दिया
एक परी ने दिया ये ताज, और  सर पर सजा दिया।

वादा लिया उसने एक, और लिखना सीखा दिया
आसमा है बहुत दूर अभी, इतना मुझे बता दिया।

तोड़े अरमान खुद के उसने, मान घर का रख दिया
जाते जाते मगर उसने, "कवि"  मेरा  नाम रख दिया।

             
              कवि आदित्य मौर्य
                  कंटालिया
                8058398148

किसान

रोटी के एक टुकडे के लिए, जिसे दिन भर तड़पते देखा है
उसी किसान के बेटे को, आँखो ने सीमा पर लड़ते देखा है।

               कवि आदित्य मौर्य
                     कंटालिया
                  8058398148

बुधवार, 21 सितंबर 2016

आदित्य

अन्याय, शोषण के विरुद्ध अपनी आवाज बुलंद रखता हूं

"कवि" हूं कलम की धार तलवार से भी तीख़ी रखता हूं।

  
                 कवि आदित्य मौर्य
                    कंटालिया

बुधवार, 14 सितंबर 2016

बात कुछ और थी

शहर तो तेरा आज भी, रंगीन होगा मगर
जब तू साथ थी तब ,बात कुछ और थी।

पीने को तो आज भी, मयख़ाने है मगर
आँखो से तूने पिलाई, वो शराब कुछ और थी।

इबादत तो खुदा से आज भी ,करती होगी मगर
हाथ उठे थे मेरे लिए , तब बात कुछ और थी।

चाँद और सितारों की चमक, तो खूब देखी मगर
जो चमक तेरी बिंदिया में थी, वो बात कुछ और थी।

याद है मुझे आज भी तेरी गली का पता मगर
जब तू मेरी अपनी थी , तब बात कुछ और थी।

सहारे तो आज भी मिल जाते है 'आदित्य,को मगर
मिली थी पनाह तेरी ज़ुल्फो  में ,वो बात कुछ और थी ।

                कवि आदित्य मौर्य
                        कंटालिया

शनिवार, 10 सितंबर 2016

सोजत वाली रोड

                    सोजत वाली रोड

कुछ और नहीं मांगता, गांव  का एक काम करा दो
सुनो नेताजी बस ये , सोजत वाली रोड बना दो

भूख हड़ताल भी की ,नौजवानों ने खाना नहीं खाया
पानी से भी प्यासे रहे , पर कोई जवाब नहीं आया।
इस टूटी-फूटी नैया का, एक बार बेड़ा पार करा दो
सुनो नेताजी बस ये ,   सोजत वाली रोड बना दो ।

टूटती कमर हमारी, गांव वाले हो गए लाचार
इस गड्ढे से निकालो , अब  तुम ही   दातार ।
किए हैं वादे पूरे हजार, एक और  पूरा  करा दो
सुनो नेताजी बस ये ,सोजत वाली रोड बना दो।

होगी जब ये मांग पूरी, एक नया इतिहास बना देंगे
करेंगे  बरसात वोटों की, एक नया सूरज चमका देंगे।
बस एक बार हमारी गूँज , संसद तक पंहुचा दो
सुनो नेता जी बस ये, सोजत वाली रोड बना दो।

                      कवि आदित्य मौर्य
                           कंटालिया
                        8058398148

मंगलवार, 6 सितंबर 2016

कवि

                      

कांटों भरी राहों में भी   सूंदर  फूल बिछा देता है
गहन अंधेरी रातों को भी सितारों से सजा देता है।

बोल के बड़बोला ना  उसको तुम  यू बदनाम करो
वो तो सूखे गमलों को भी फूलो से सजा देता   है।

                   ✍आदित्य मौर्य
                          कंटालिया

सोमवार, 5 सितंबर 2016

मेरी माँ

कुछ इस तरह दिन भर की सारी थकान उतार देती है.......
बेटे को मुस्कुराता देख माँ अपने  दुःख दर्द भुला देती है।

            ✍🏻कवि आदित्य मौर्य✍🏻
                      कंटालिया
                    8058398148