अन्याय, शोषण के विरुद्ध अपनी आवाज बुलंद रखता हूं
"कवि" हूं कलम की धार तलवार से भी तीख़ी रखता हूं।
जब भी होता वार पीठ पर, होटो पर बस एक मुस्कान रखता हु
ना हो गुमान कोई कभी मुझे, आईना इसलिए साथ रखता हु।
पढ़ ले हर कोई मुझे, खुद को एक खुली किताब सा रखता हु
गिर कर भी संभल जाऊ, हौसलो में ऐसी उड़ान रखता हु।
दौलत से मुझे क्या वास्ता, बहस माँ की एक तस्वीर साथ में रखता हु
"कवि" हूं कलम की धार तलवार से भी तीख़ी रखता हूं।
कवि आदित्य मौर्य
कंटालिया