रविवार, 9 अप्रैल 2017

बाबा साहब

अपने समाज का करू क्या मै बखाण, इसकी तो आन बान शान ही निराली है
छठा इसकी देखो लग रही जैसे, ताज से भी प्यारी और बड़ी ही निराली है।

कुछ नहीं मांगू अब कुछ नहीं चाहू बस, एक बात हमको कर के दिखानी है
बाबा साहब ने सोचा था जो बरसों पहले, वैसी एकता समाज में लानी है।

                        कवि आदित्य मौर्य
                           कंटालिया