कवि आदित्य मौर्य
बुधवार, 26 सितंबर 2018
चिराग़
मुझे देकर ग़म दुनिया भर के,
देखों वो खुशियां मना रही हैं..
हम तो कब के बूझ चुके,
चिराग़ वो घर के जला रही हैं।
कवि आदित्य मौर्य
कंटालिया
8058398148
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